कल सुप्रीम कोर्ट में मुकदमों की सुनवाई कर रहे भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई पर जूता फेंकने का प्रयास किया गया। यह प्रयास सुप्रीमकोर्ट के वकील राकेश किशोर ने किया। फिलहाल मुख्य न्यायाधीश ने घटना से प्रभावित हुए बिना सुनवाई जारी रखी और उन्होंने वकीलों तथा सुरक्षाकर्मियों से भी घटना की अनदेखी करने को कहा।
देश के सबसे प्रतिष्ठित और सुरक्षित स्थानों में से एक , हमारी सर्वोच्च न्यायालय आज एक ऐसी घटना का गवाह बनी जिसने न केवल पूरे न्यायपालिका की गरिमा पर सवाल खड़ा कर दिया , बल्कि यह भी दिखाया कि संवैधानिकशीलता और कानून के प्रति हमारी समझ अभी भी परीक्षण के दौर में है।
कल हुई घटना में 71 वर्षीय वकील राकेश किशोर ने सुप्रीम कोर्ट में ही सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश पर जूता फेंकने का प्रयास किया। यह एक ऐसा कृत्य है , जिसे केवल व्यक्तिगत आक्रोश या विरोध से जोड़ कर नहीं देखा जा सकता है। यह हमारे लोकतंत्र, संवैधानिक मूल्यों और न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए एक गंभीर चेतावनी है।
बार काउंसिल आफ इंडिया ने आरोपित वकील के विरुद्ध कार्रवाई करते हुए उनका लाइसेंस तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है, साथ ही कारण बताओं नोटिस भी जारी किया है। आरोपित वकील दिल्ली हाईकोर्ट, कड़कड़डूमा कोर्ट और दिल्ली की अन्य अदालतों में प्रैक्टिस करता है।
घटना के बाद प्रधानमंत्री मोदी जी ने चीफ जस्टिस बीआर गवई से बात की और घटना लेकर दुख जताया। इसी के साथ सभी दलों ने भी घटना की कड़ी निंदा की है। जैसा की चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पीठ जब मुकदमों की सुनवाई कर रही थी तो यह घटना 11:55 बजे हुई।
सुप्रीम कोर्ट सिर्फ एक अदालत नहीं बल्कि लोकतंत्र का प्रतीक है। यह वह स्थान है जहां तर्क , कानून और संवैधानिक मर्यादा का शासन होता है। जब किसी व्यक्ति द्वारा हिंसा की जाती है, तो यह केवल अदालत के अधिकारों के लिए खतरा नहीं है, बल्कि पूरे न्याय की प्रतिष्ठा पर आघात है। न्यायाधीशों का काम तथ्यों और कानून के आधार पर निष्पक्ष निर्णय देना है। कभी-कभी उनके निर्णय से कुछ लोग असंतुष्ट हो सकते हैं, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि वे खुद से न्याय करने का प्रयास करे। न्यायपालिका और समाज दोनों को संवेदनशील मुद्दों को संभालने में सावधानी बरती चाहिए , लेकिन हिंसा की अनुमति किसी को भी नहीं है।
कल की घटना हमें याद दिलाती है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और गरिमा हमारी सुरक्षा और सामाजिक जिम्मेदारी पर निर्भर करती है। यह घटना केवल एक वकील के कृत्य तक सीमित नहीं है, यह पूरे समाज के लिए चेतावनी है कि संवेदनशील मद्दों पर शांति और न्याय की मार्ग को अपनाना ही सही है। हम सभी को यह सीख लेनी चाहिए कि निर्णयो से असंतोष हो सकता है, लेकिन उसका समाधान हमेशा कानूनी संवैधानिक और संवाद के माध्यम से ही होना चाहिए। हिंसा, चाहे किसी भी रूप में हो, लोकतंत्र और न्यायपालिका के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है ।
न्यायपालिका पर हमले को रोकना सिर्फ कानून का पालन नहीं है , बल्कि हमारी जिम्मेदारी है । हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि अदालतों का माहौल सुरक्षित और सम्मानजनक बना रहे, ताकि न्याय का संदेश प्रत्येक नागरिक तक पहुंचे। इस घटना से यही संदेश मिलता है कि संवाद, बहस और कानून के रास्ते ही हमारी ताकत है । हिंसा और आक्रोश कभी समाधान नहीं कर सकते। न्याय की गरिमा और लोकतंत्र की प्रतिष्ठा हमारी पहली प्राथमिकता होना चाहिए।
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